मुकेश की कहानियां हिमालय के लोक जीवन का दस्तावेज
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कथाकार जितेन ठाकुर ने कहा कि साहित्य अपने समय को भविष्य के लिए शब्दों में दर्ज करता है, ताकि आने वाली पीढ़ियां अतीत की उपलब्धियों और गलतियों से सबक ले सके। कथाकार मुकेश नौटियाल की कहानियां हिमालय के लोक-जीवन का विश्वसनीय दस्तावेज हैं। इसमें नई पीढ़ी के लिए बहुत कुछ है।
धाद स्मृति वन मालदेवता में कथाकार मुकेश नौटियाल के कहानी संकलन ‘हिमालय की कहानियां के दूसरे संस्करण के प्रकाशन अवसर पर हुए सृजन-संवाद में जितेन ठाकुर ने यह बात कही। इससे पहले मीनाक्षी जुयाल ने मुकेश नौटियाल की चर्चित कहानी जाली वाला दरवाजा का नाटकीय वाचन किया। धाद सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा कि धाद के शैक्षिक अभियान पुस्तक-कोना में ‘हिमालय की कहानियां रखवाई जा रही हैं। धाद खुद भी ऐसी विषय वस्तु की पुस्तकों का प्रकाशन करेगा। संचालन रवींद्र नेगी ने किया। कार्यक्रम में पूर्व कुलपति डॉ. सुधारानी पाण्डेय, वरिष्ठ आलोचक दिनेश जोशी, साहित्यकार डॉली डबराल, सुधा जुगरान, डॉ. राकेश बलूनी, शांति प्रकाश जिज्ञासु, निशा जोशी, रेखा नेगी, मनोहर लाल, राजीव पांथरी, प्रभाकर देवरानी, नंदलाल शर्मा, स्वाति बडोला, मनीषा ममगाईं, मंजू काला, बीरेंद्र खंडूड़ी, अर्चना ग्वाड़ी, पुष्पलता ममगाईं, मदन मोहन कंडवाल, अनिता सबरवाल आदि ने भाग लिया।
आयोजन के आकर्षण गढ़ कल्यो
देहरादून। आयोजन का विशेष आकर्षण धाद द्वारा पहाड़ी भोजन के पक्ष में हर महीने आयोजित होने वाला कल्यो रहा। पहाड़ के भोजन को फ्यूजन के साथ परोसा गया। कल्यो कि संयोजिका मंजू काला ने बताया कि इस बार चने और हरे प्याज का अदरकी फाणु, इलायची की खुशबू में पगा सतरंगी झंगौरा,बडी़ दो प्याजा, लहसुनिया ढबाडी रोटी, आलू काखडी़ का रैला, केशरिया भात उर्फ जर्दा पुलाव या पहाड़ी खुशका परोसा गया।